एक देश, एक समय : क्या पूरे भारत में एक ही टाइम होना सही है?

नई दिल्ली। क्या आप जानते हैं कि भारत में अलग-अलग जगहों पर समय थोड़ा-बहुत अलग होता है? सरकार ने अब एक नया मसौदा तैयार किया है जिनके मुताबिक पूरे देश में सिर्फ एक ही समय चलेगा- इंडियन स्टैंडर्ड टाइम (IST).

इसका मतलब यह है कि चाहे आप कोई भी काम करें, जैसे कि दुकान पर सामान खरीदना, ट्रेन में सफर करना, सरकारी दफ्तर में काम करना, कोई कानूनी कागज बनाना या बैंक में पैसे जमा करना, हर जगह समय देखने के लिए IST का ही इस्तेमाल करना होगा. इसके लिए सरकार ने नए नियम बनाए हैं और 14 फरवरी 2025 तक लोगों से इस पर उनकी राय मांगी है.

सरकार ने पूरे देश में एक ही समय चलाने का जो प्लान बनाया है, उसे पूरा करने के लिए कंज्यूमर अफेयर्स डिपार्टमेंट ने नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी (NPL) और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के साथ हाथ मिलाया है. NPL और ISRO मिलकर एक ऐसा सिस्टम बनाएंगे जिससे पूरे देश में सही समय का पता चल सके और सभी जगह एक ही समय दिखे. अगर कोई इन नए नियमों को नहीं मानता है तो उसे सजा भी हो सकती है. सरकार समय-समय पर जांच करेगी कि सभी जगह नियमों का पालन हो रहा है या नहीं.

IST का मतलब है Indian Standard Time यानी भारतीय मानक समय. क्योंकि भारत में ‘डेलाइट वेसिंग टाइम’ जैसे कॉन्सेप्ट नहीं हैं, इसलिए IST पूरे साल एक जैसा ही रहता है. सेना और एविएशनमें IST को ‘Echo-Star’ कहा जाता है. कंप्यूटर और इंटरनेट में IST को ‘Asia/Kolkata’ लिखा जाता है. IST का इस्तेमाल पूरे भारत और श्रीलंका में होता है.

IST 82.5° देशांतर रेखा (longitude) पर आधारित है. यह रेखा उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के पास मिर्जापुर से होकर गुजरती है. देशांतर रेखाएं पृथ्वी पर उत्तर से दक्षिण ध्रुव तक खींची गई काल्पनिक रेखाएं होती हैं जिनका इस्तेमाल समय निर्धारित करने के लिए किया जाता है. आईएसटी, ग्रीनविच मीन टाइम (GMT) से 5 घंटे 30 मिनट आगे है. GMT को अब यूनिवर्सल कोऑर्डिनेटेड टाइम (UTC) कहा जाता है. यह दुनिया भर में समय का एक मानक है.

भारत में समय का रक्षक CSIR-नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी (NPL), नई दिल्ली है. NPL पांच सीजियम परमाणु घड़ियों का उपयोग करके समय को रिकॉर्ड करता है. ये घड़ियां बहुत ही सटीक होती हैं और इनसे समय में बहुत ही कम गलती होती है.

आजादी से पहले भारत में हर जगह अलग-अलग समय होता था. हर शहर और गांव का अपना लोकल टाइम था. यह बिल्कुल ऐसे ही था जैसे आजकल दुनिया के अलग-अलग देशों में अलग-अलग समय होता है. 1850 के दशक में भारत में रेलवे का जाल बिछने लगा. ट्रेनें एक शहर से दूसरे शहर जाने लगीं. तब समस्या आने लगी. अगर हर जगह अलग-अलग समय होगा तो ट्रेनों का टाइमटेबल कैसे बनेगा? यात्रियों को समय का पता कैसे चलेगा? तब लोगों को एक unified time zone की जरूरत महसूस हुई.

1884 में कोलकाता और मुंबई में दो टाइम जोन (बॉम्बे टाइम और कलकत्ता टाइम) बनाए गए. कोलकाता का समय GMT (Greenwich Mean Time) से 5 घंटे 30 मिनट आगे था, जबकि मुंबई का समय GMT से 4 घंटे 51 मिनट आगे था. 1905 में यह तय हुआ कि पूरे देश में एक ही समय चलेगा. इसके लिए इलाहाबाद के पूर्व से गुजरने वाली रेखा को स्टैंडर्ड टाइम के लिए चुन लिया गया. फिर, 1906 में पूरे देश में एक ही समय लागू कर दिया गया. यह ब्रिटिश राज की देन है जो आज तक चली आ रही है. आखिरकार, 1947 में आजादी के बाद इसे इंडियन स्टैंडर्ड टाइम का नाम दिया गया.

पहले कलकत्ता और मुंबई के बीच एक घंटा 9 मिनट का समय का फर्क था. लेकिन आज 1650 किलोमीटर की दूरी होने के बावजूद दोनों शहरों में एक ही समय चलता है. असम के चाय बागानों में आज भी ‘बागान टाइम’ चलता है जो IST से एक घंटा आगे है.

यह किसी एक व्यक्ति का काम नहीं था, बल्कि इसमें कई लोगों और घटनाओं का योगदान रहा. लेकिन इस कहानी की शुरुआत जॉन गोल्डिंघम नाम के एक खगोल विज्ञानी (Astronomer) से हुई. 1792 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने चेन्नई (तब मद्रास) में मद्रास वेधशाला की स्थापना की. यह एशिया की सबसे पहली वेधशालाओं में से एक थी. यहां तारों और ग्रहों का अध्ययन किया जाता था.

1802 में कंपनी के पहले आधिकारिक खगोल विज्ञानी जॉन गोल्डिंघम ने मद्रास के लॉन्गिट्यूड की गणना की. उन्होंने पाया कि मद्रास का समय GMT से 5 घंटे 30 मिनट आगे है. यह पहली बार था जब किसी लोकल स्टैंडर्ड टाइम का इस्तेमाल किया गया. यही समय आगे चलकर IST बना. जॉन गोल्डिंघम को IST का जनक कहना ज्यादा सही नहीं होगा, लेकिन उनके काम ने IST की नींव जरूर रखी.

भारत में सही समय कौन तय करता है?
यह जिम्मेदारी CSIR-NPL की है. CSIR-NPL का मतलब है Council of Scientific and Industrial Research-National Physical Laboratory. यह भारत का नेशनल मेट्रोलॉजी इंस्टीट्यूट है. मतलब यह माप तौल से जुड़े कामों को देखता है, जैसे किलोग्राम, मीटर, सेकंड आदि. इसी संस्थान के पास भारत का समय रखने की जिम्मेदारी है.

CSIR-NPL के पास सीजियम एटॉमिक क्लॉक और हाइड्रोजन मेस हैं. यह बहुत ही सटीक घड़ियां होती हैं. यह इतनी सटीक हैं कि इन्हें 3 लाख साल में सिर्फ 1 सेकंड का फर्क पड़ेगा.

दरअसल, आजकल हमारी जिंदगी में टेक्नोलॉजी का बहुत महत्व है. इंटरनेट, मोबाइल फोन, सैटेलाइट्स, रेलवे आदि सब सही समय पर निर्भर करते हैं. अगर समय में थोड़ी भी गड़बड़ी हुई तो कई समस्याएं आ सकती हैं. इसलिए CSIR-NPL यह जिम्मेदारी निभाता है कि पूरे देश में सही समय रहे.

भारत लगभग 3000 किलोमीटर लंबा देश है. अगर हम पूर्व से पश्चिम की तरफ जाएं, तो सूर्य के हिसाब से समय में लगभग 2 घंटे का फर्क पड़ता है. मतलब पूर्व में सूर्य जल्दी उगता है और पश्चिम में देर से. भारत 97 डिग्री 25 मिनट पूर्व (अरुणाचल प्रदेश) से लेकर 68 डिग्री 7 मिनट पूर्व (गुजरात) तक फैला हुआ है. यह लगभग 30 डिग्री लॉन्गिट्यूड का अंतर है, जो दो टाइम जोन बनाने के लिए काफी है.

लंदन की रॉयल सोसाइटी ने भारत के लिए दो टाइम जोन का सुझाव दिया था- एक GMT से एक घंटा आगे और दूसरा एक घंटा पीछे. पश्चिम भारत के लिए GMT से पांच घंटे आगे और पूर्वी भारत के लिए GMT से छह घंटे आगे. लेकिन अंग्रेज सरकार ने इस सुझाव को नहीं माना और पूरे देश के लिए GMT से साढ़े पांच घंटे आगे का एक ही समय लागू कर दिया. इस तरह, 1906 में अंग्रेज अधिकारियों ने Indian Standard Time लागू कर दिया.

तर्क दिया जाता है कि उत्तर-पूर्वी राज्यों में गर्मियों में सूरज सुबह 4 बजे ही उग जाता है, लेकिन ऑफिस 10 बजे खुलते हैं. इससे बहुत सारा दिन का समय बर्बाद हो जाता है जिसका इस्तेमाल प्रोडक्टिव कामों के लिए किया जा सकता है. दूसरा तर्क दिया जाता है कि हमारे शरीर की एक बायलॉजिकल क्लॉक होती है जो दिन और रात के चक्र के हिसाब से चलती है. IST कन्याकुमारी, कवरत्ती और घुआर मोटा जैसी जगहों के लिए तो ठीक है, लेकिन डोंग और पोर्ट ब्लेयर जैसी जगहों के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है.

अगर दो टाइम जोन हुए तो ऑफिस और बैंक अलग-अलग समय पर खुलेंगे और बंद होंगे. इससे लोगों को बहुत परेशानी होगी. ट्रेनों को दोनों टाइम जोन के हिसाब से चलाना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो ट्रेनें आपस में टकरा सकती हैं और एक्सीडेंट हो सकते हैं.

बहुत से लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं, उन्हें घड़ी देखकर समय समझने में दिक्कत होती है. अगर दो टाइम जोन हुए तो उन्हें और भी कन्फ्यूजन होगा. समय का सही हिसाब रखने के लिए सरकार को एक और लैबोरेटरी बनानी होगी, जिसमें बहुत पैसा खर्च होगा.

दोनों टाइम जोन के बीच में लाइन कहां खींची जाए, यह तय करना मुश्किल होगा. भारत पहले से ही कई चीजों को लेकर बंटा हुआ है. दो टाइम जोन होने से एक और बंटवारा होगा. साथ ही राजनीतिक समस्याएं भी बढ़ सकती हैं.

भारत का समय अमेरिका के न्यूयॉर्क से 9 घंटे 30 मिनट आगे है. इसी तरह, यह लंदन से 5 घंटे 30 मिनट आगे और जापान के टोक्यो से 3 घंटे 30 मिनट पीछे है. ज्यादातर देशों में समय पूरे घंटे के हिसाब से चलता है, लेकिन भारत में आधा घंटा भी जुड़ता है. ऐसा 100 साल से भी ज्यादा समय से हो रहा है. दुनिया में बहुत कम देश ऐसे हैं जो आधे घंटे के हिसाब से समय तय करते हैं. भारत के अलावा ईरान, म्यांमार और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में भी ऐसा ही होता है.

यह जानकर आपको हैरानी होगी कि फ़्रांस में पूरे 13 टाइम जोन हैं. कभी फ़्रांस का साम्राज्य बहुत बड़ा था. 16वीं और 17वीं सदी में यह लगभग 39 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला था. आज भी दुनिया के कई हिस्सों में फ़्रांस के छोटे-छोटे इलाके हैं. इसी वजह से फ़्रांस में इतने सारे टाइम जोन हैं. फ़्रांस के कुछ द्वीप UTC-10:00 टाइम जोन में हैं. मतलब यह दुनिया में सबसे आखिर में नया साल मनाते हैं. आज फ़्रांस का क्षेत्रफल रूस से छोटा है. लेकिन दुनिया भर में फैले इन छोटे-छोटे इलाकों की वजह से फ्रांस में रूस से ज्यादा टाइम जोन हैं.

रूस दुनिया का सबसे बड़ा देश है, जो 66 लाख वर्ग मील में फैला है.यह इतना बड़ा है कि इसमें पूरे 11 टाइम जोन हैं. मतलब रूस के एक कोने में सुबह के 6 बज रहे होंगे, तो दूसरे कोने में शाम के 5 बज रहे होंगे. कभी सोवियत संघ और रूसी साम्राज्य में अलास्का जैसे इलाके भी शामिल थे.

वहीं, अमेरिका में पूरे 11 टाइम जोन हैं. अमेरिका का क्षेत्रफल बहुत ज्यादा है. यह पूर्व से पश्चिम तक बहुत फैला हुआ है. इसी वजह से यहां अलग-अलग समय पर सूरज उगता और डूबता है. अमेरिका की मुख्य भूमि में 4 टाइम जोन हैं. अलास्का और हवाई राज्यों के अपने अलग टाइम जोन हैं. प्रशांत महासागर में अमेरिका के 5 टाइम जोन हैं. कैरिबियन सागर में अमेरिका का 1 टाइम जोन है. अमेरिका के कुछ द्वीप बहुत ही अलग टाइम जोन में हैं. जैसे कुछ द्वीप UTC-12:00 में हैं, जबकि कुछ UTC+12:00 में है.

कभी ब्रिटेन दुनिया का सबसे ताकतवर देश था. उसका राज पूरी दुनिया में फैला था. 1920 के दशक में ब्रिटिश साम्राज्य 135 लाख वर्ग मील में फैला था और इसकी आबादी 413 करोड़ थी. आज ब्रिटेन बहुत छोटा हो गया है. दक्षिण अफ्रीका जैसे कई देश आजाद हो गए हैं. अब ब्रिटेन का क्षेत्रफल सिर्फ 94 हजार वर्ग मील है. लेकिन फिर भी इसमें पूरे 9 टाइम जोन हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि दुनिया के कई हिस्सों में अभी भी ब्रिटेन के छोटे-छोटे इलाके हैं. ऑस्ट्रेलिया भी एक बड़ा देश है, इस कारण यहां 9 टाइम जोन हैं. ऐसे ही कनाडा में 6, डेनमार्क में 5, न्यूजीलैंड में 5 और ब्राजील में 4 टाइम जोन हैं.

Source : ABPLIVE AI

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