बाजार में सक्रिय है नकली दवाओं का बड़ा सिंडिकेट, नकली या घटिया स्तर की है देश में नामी कंपनियों के नाम से बिक रही 25% दवाएं!

नई दिल्ली। एक ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में हर चौथी दवा नकली है। बुखार, शुगर, ब्लड प्रेशर, पेन किलर से लेकर कैंसर तक की घटिया या नकली दवाएं मार्केट में हैं। कई नामी देसी-विदेशी कंपनियों के नाम की ये दवाइयां बिक रही हैं। ऐसे में यह माना जा सकता है कि अगर आप डॉक्टर की बताई मात्रा और सही समय पर दवाइयां ले रहे हैं और आपकी तबीयत में सुधार नहीं हो रहा है तो फिर आप जो दवा ले रहे हैं वो नकली हो सकती है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) का दावा है कि दुनिया में नकली दवाओं का कारोबार 200 बिलियन डॉलर यानी करीब 16,60,000 करोड़ रुपये का है। नकली दवाएं 67% जीवन के लिए खतरा होती हैं। बची हुई दवाएं खतरनाक भले ही ना हों, लेकिन उनमें बीमारी ठीक करने वाला साल्ट नहीं होता है, जिस वजह से मरीज की तबीयत ठीक नहीं होती है। आखिरकार मर्ज बिगड़ता चला जाता है, जिससे वह मौत के मुंह तक चला जाता है। नकली या घटिया दवाओं के एक्सपोर्ट और इंपोर्ट का भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा बाजार है। एसोचैम की एक स्टडी के मुताबिक, भारत में 25% दवाएं नकली या घटिया हैं। भारतीय मार्केट में इनका कारोबार 352 करोड़ रुपये का है।

तेलंगाना में पिछले साल करोड़ों की नकली या घटियां दवाइयां पकड़ी गईं। तेलंगाना ड्रग्स कंट्रोल एडमिनिस्ट्रेशन की जांच में खुलासा हुआ कि नामी कंपनियों के नाम से बनी इन दवाइयों में चाक पाउडर या स्टार्च था। इसी तरह अगर कैप्सूल एमोक्सिलिन का है तो उसमें सस्ती दवा पेरासिटामोल भरी हुई थी। इसी तरह 500 ग्राम एमोक्सिलिन साल्ट की मात्रा सिर्फ 50 ग्राम ही थी। कैंसर तक की नकली दवाएं पकड़ी गईं। ये सभी दवाएं उत्तराखंड के काशीपुर और यूपी के गाजियाबाद से कूरियर के जरिए तेलंगाना पहुंची थी। इन दवाओं की पैकिंग इस तरह की गई थी, जो बिल्कुल असली लग रही थीं। इनकी पहचान करना मुश्किल था।

उत्तराखंड में पिछले साल कई दवा कंपनियों के सैंपल जांच में खरे नहीं उतरे तो उनका लाइसेंस कैंसल किया गया। यह सभी दवाइयां उत्तराखंड में बन रही थीं। इसी तरह आगरा के मोहम्मदपुर में 2024 में नकली दवा बनाने वाली फैक्ट्री पकड़ी गई। पुलिस ने 80 करोड़ रुपये की नकली दवाएं पकड़ी थीं। इसमें कैंसर, डायबिटीज, एलर्जी, स्लीपिंग पिल्स और एंटीबायोटिक्स दवाएं शामिल थीं। इसी तरह देश के कई राज्यों में छापेमारी कर नकली दवाओं की खेप पकड़ी गई। इससे पहले कोविड-19 के समय भी देश भर में नकली रेमडिसीवर के इंजेक्शन सप्लाई करने के मामले तक सामने आए थे।

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने भी कई ऑपरेशन में पिछले सालों में दिल्ली-एनसीआर में चल रहे कई सिंडिकेट का भंडाफोड़ किया। गाजियाबाद के लोनी स्थित ट्रोनिका सिटी में नकली दवाओं का गोदाम पकड़ा, जिसका मास्टरमाइंड एक डॉक्टर निकला। ये सोनीपत के गन्नौर स्थित फैक्ट्री में भारत, अमेरिका, इंग्लैंड, बांग्लादेश और श्रीलंका की 7 बड़ी कंपनियों के 20 से ज्यादा ब्रैंड की नकली दवा तैयार कर रहे थे। इंडिया मार्ट और भागीरथ प्लेस तक में इनकी सप्लाई थी। भारत के अलावा चीन, बांग्लादेश और नेपाल में एक्सपोर्ट करते थे। इस गिरोह से 8 करोड़ की नकली दवाएं और करीब 9 करोड़ रुपये के दो प्लॉट के दस्तावेज मिले।

कैंसर के इलाज के दौरान कीमोथेरेपी के नकली इंजेक्शन बनाने वाला गैंग भी पकड़ा गया। इनसे दो भारतीय और सात विदेशी कंपनियों की नकली दवाइयां बरामद हुईं। इस मात्रा की असली दवाई की कीमत 4 करोड़ रुपये थी। ये ब्रैंडेड इंजेक्शन की खाली शीशी 5000 रुपये में खरीदते थे, जिसमें 100 रुपये की एंटी फंगल दवा ‘फ्लुकोनाजोल’ भरते और मार्केट में ब्रैंड के हिसाब से एक से तीन लाख रुपये में बेच देते थे।

पुलिस अफसर बताते हैं कि दिल्ली के कुछ नामी अस्पताल भी इस काले कारोबार में शामिल हैं। पिछले साल क्राइम ब्रांच कैंसर, डायबिटीज और किडनी की नकली और अवैध दवाइयों पर सेंट्रल और ईस्ट जिले के दो नामी प्राइवेट हॉस्पिटल में छापेमारी की। इनके जरिए देहरादून में तीन फैक्ट्रियों का खुलासा हुआ। दो फैक्ट्रियों में करीब 8 करोड़ रुपये की दवाइयां जब्त की।

एक्सपर्ट बताते हैं कि नामी ब्रैंडेड कंपनियों के नाम से ही नकली या घटिया दवाइयां बनती हैं, क्योंकि इसके जरिए जालसाज मोटा मुनाफा कमाते हैं। दूसरी तरफ, जेनेरिक दवाइयों के नकली होने के मामले अभी तक सामने नहीं आए हैं, क्योंकि इन्हें नकली बनाने पर कोई ज्यादा फायदा नहीं होने वाला है। जेनेरिक दवाइयां सस्ती होती हैं, जो उसी तरह का फायदा करती हैं, जिस तरह का लाभ ब्रैंडेड दवाइयों से मिलता है। सरकार जेनेरिक दवाइयों को बढ़ावा दे रही है, जो काफी सस्ती होती हैं। इन्हें आप मेडिकल स्टोर और जन औषधि केंद्र से खरीद सकते हैं।

एक्सपर्ट के अनुसार, देश के सभी राज्यों में ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट और पुलिस की एक एक्सपर्ट टीम बननी चाहिए, जो लगातार नकली या घटिया दवाओं पर नजर रखे। सभी सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के अलावा डिस्पेंसरियों और दवा के थोक बाजारों की भी लगातार निगरानी हो। किसी भी केस के सामने आने पर पुलिस और ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट अपने-अपने मुकदमे दर्ज करें। हर मामले की तह तक जांच हो और सभी अपराधियों को सजा मिले। जान से खिलवाड़ करने वाला यह खेल इसी तरह से बंद किया जा सकता है।

नशे के कारोबार में बढ़ता दवाइयों का काला धंधा
कुछ ऐसी दवाएं हैं, जिन्हें ज्यादा मात्रा में लेने पर नशा होने लगता है। शराब और ड्रग्स से इन दवाओं का नशा काफी सस्ता होने से नशेड़ी इसका इस्तेमाल करते हैं। इस वजह से कफ सिरप, पेन किलर्स, डिप्रेशन पिल्स और मनोरोगियों को दिए जाने इंजेक्शन की खपत बढ़ रही है। इसका फायदा दवा बनाने वाली कंपनियां भी उठा रही हैं, जो एक लाइसेंस पर कई फैक्ट्रियां चलाकर इन्हें धड़ल्ले से बना रही हैं।

दिल्ली पुलिस के एक अफसर बताते हैं कि एक केस के सिलसिले में उत्तराखंड के देहरादून गए तो वहां एक लाइसेंस पर दो फैक्ट्री चलती मिलीं। दर्द की दवा ‘ट्रामाडोल’ समेत कई सिरप और कैप्सूल अवैध रूप से बन रहे थे। जांच में खुलासा हुआ था कि इनको नशा करने के लिए बेचा जा रहा था। उत्तराखंड के ड्रग डिपार्टमेंट के साथ आठ करोड़ रुपये की ट्रामाडोल समेत कई दवाइयां जब्त की। ड्रग डिपार्टमेंट ने सैंपल लिए तो दवाई में तय मात्रा से कम साल्ट मिला। इसकी वजह ये थी कि इन्हें नशे के तस्कर खरीदते थे, जिनको नशेड़ियों को बेचा जा रहा था। उन्हें ये कारोबार कम खतरे और ज्यादा मुनाफे वाला लग रहा है। इसमें फैक्ट्री मालिक, दवा डिस्ट्रीब्यूटर, कैमिस्ट तक शामिल हैं।

डिप्रेशन के इलाज के लिए दी जाने वाली गोली का आजकल रेव पार्टियों में काफी इस्तेमाल हो रहा है। युवा इस गोली को ज्यादा मात्रा में नशे के लिए लेते हैं। इसे लेकर वह खुशनुमा माहौल का अहसास करते हैं। सेवन करने वाले को थकान नहीं होती है और काफी खुश दिखाई देता है। वह स्लो म्यूजिक में भी नाचने लगता है। इसका असर खत्म होते ही थकान होने लगती है, जिससे वह इसे दोबारा लेता है। धीरे-धीरे इसकी आदत लग जाती है। रेव पार्टियों में इन्हें 5000 रुपये तक में बेचा जाता है। इसी तरह कुछ दवाइयां मनोरोगियों के लिए हैं, लेकिन उन्हें भी नशे के लिए लिया जाता है। एलर्जी होने पर लगाए जाने वाले एविल इंजेक्शन का भी चलन है।

यह सही है कि असली की आड़ में नकली दवा का कारोबार पनप रहा है। आम लोगों की सेहत से खिलवाड़ हो रहा है। देखने में यह नकली दवा ब्रैंडेड दवा की तरह ही होती हैं लेकिन यह अलग-अलग मेटिरियल से तैयार होती हैं। हाल ही में क्राइम ब्रांच ने नकली दवाओं के एक इंटरस्टेट सिंडीकेट को पकड़ा था जो आरा मशीन पर निकलने वाले लकड़ी के बुरादे और घरेलू नुस्खा के हिसाब से मेथी, अजवाइन, हल्दी और अन्य चीजों का इस्तेमाल करते थे।

ऐसे में अगर आपको किसी दवा के बारे में संदेह है, तो अपने डॉक्टर या फार्मासिस्ट से सलाह लें। ब्रैंडेड कंपनियों के नाम का मिसयूज करके बेची जाने वाली दवाएं नकली हो सकती हैं। हाल ही में नामी दवा कंपनियों ने नया सिस्टम लागू किया है। इसमें कंपनियों ने अपने सिरप के लेबल, टैबलेट कैप्सूल के स्ट्रिप पर कोड और कंपनी का हेल्पलाइन नंबर छापना शुरू कर दिया है। इस हेल्पलाइन से रैपर या शीशी पर दर्ज हेल्पलाइन नंबर पर लोग मेसेज कर संबंधित दवा की असलियत जान सकेंगे।

एक अधिकारी ने बताया कि नकली दवाओं की बिक्री बेहद गंभीर मामला है, लेकिन अगर आप जागरूक नहीं हैं तो ये आसानी से पकड़ में नहीं आ पातीं। दूसरी सबसे बड़ी वजह है कमजोर निगरानी सिस्टम। कायदे से ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट की ये जिम्मेदारी है कि वह नकली दवाओं की खरीद फरोख्त करने वालों को पकड़ें। लेकिन अमूमन ऐसा कम ही देखने को मिलता है। अगर नियमित तौर पर ये डिपार्टमेंट जांच पड़ताल करे तो नकली दवाएं बेचने वालों की लगाम कसी जा सकती है। नकली दवाएं मरीजों के लिए जानलेवा साबित होती हैं। ऐसे में जरूरी है निगरानी सिस्टम को दुरुस्त किया जाए।

असली और नकली दवाओं की पहचान कैसे करें?
पैकेजिंग: गौर से दवा की पैकेजिंग देखें। उस पर प्रिंट जानकारी स्पेलिंग एरर, मिस प्रिंट या हल्की पैकिंग। इसके अलावा पैकेजिंग सील सही लगी है या नहीं।
कीमत: अगर कोई दवा बाजार मूल्य से बहुत कम कीमत पर मिल रही है, तो संभव है कि वह नकली हो।
QR कोड: अगस्त 2023 के बाद बनी 300 ब्रैंडेड दवाओं की पैकेजिंग पर QR कोड अनिवार्य हो गया है। इसे स्कैन करने पर दवा से जुड़ी पूरी जानकारी मिलती है। अगर दवा पर ये कोड नहीं है, तो वह नकली हो सकती है।
कलर: दवा की गोली या कैप्सूल का रंग, आकार और बनावट एक ही तरह की हो। कोई दाग या धब्बा नहीं होना चाहिए।
मेडिकल स्टोर: दवा हमेशा किसी भरोसेमंद मेडिकल स्टोर से ही खरीदें।
फार्मासिस्ट: अगर आपको दवाइयों के असली या नकली होने को लेकर शंका में हैं, तो आप अपने स्थानीय फार्मासिस्ट से परामर्श ले सकते हैं। वे आपको सही दिशा में मार्गदर्शन कर सकते हैं।

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