1991 के पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा हिंदू संगठन, कहा- ‘ये मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है’

नई दिल्ली। पूजा स्थल कानून के खिलाफ अखिल भारतीय संत समिति भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। अखिल भारतीय संत समिति ने सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप अर्जी दाखिल कर कानून की धारा तीन और चार को रद करने की मांग करते हुए मामले में पक्ष रखने की इजाजत मांगी है। पूजा स्थल कानून के मामले में सुप्रीम कोर्ट में करीब आधा दर्जन से ज्यादा याचिकाएं और अर्जियां लंबित हैं जिन पर कोर्ट 17 फरवरी को सुनवाई करेगा।

इन याचिकाओं और अर्जियों में से कुछ में कानून के प्रविधानों को संविधान के खिलाफ और भेदभाव पूर्ण बताते हुए रद करने की मांग की गई है जबकि कुछ में कानून के प्रविधान ठीक से लागू करने की मांग की गई है। संत समिति ने कानून रद करने की मांग की है जबकि इससे पहले ही जमीयत उलमा ए हिन्द ने याचिका दाखिल कर कानून को ठीक से लागू करने की मांग की गई है।

पूजा स्थल (विशेष प्रविधान) अधिनियम 1991 कहता है कि किसी भी पूजा स्थल की वही स्थिति रहेगी जो 15 अगस्त 1947 को थी। किसी भी धार्मिक स्थल का चरित्र नहीं बदला जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने लंबित मुख्य मामले में पिछली सुनवाई पर आदेश दिया था कि फिलहाल कोई भी अदालत किसी धार्मिक स्थल पर दावे का नया वाद पंजीकृत नहीं करेगी और पुराने लंबित मुकदमों में कोई प्रभावी आदेश नहीं देगी। न ही सर्वे का आदेश देगी।

इस समय देश की अदालतों में कई मामले जैसे बनारस में ज्ञानवापी, मथुरा में शाही ईदगाह, संभल में शाही जामा मस्जिद, मध्य प्रदेश में भोजशाला आदि लंबित हैं जिनमें धार्मिक स्थलों पर दावे किये गए हैं। इन्हें देखते हुए 17 फरवरी को पूजा स्थल कानून पर होने वाली सुनवाई अहम होगी।

हिंदू संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी एक नई याचिका दायर की है और इसमें विभिन्न आधारों पर 1991 अधिनियम की धारा 3 और 4 की वैधता को चुनौती दी है। बता दें कि अधिनियम की धारा 3 पूजा स्थलों के रूपांतरण पर रोक लगाती है।p स्थानों के धार्मिक चरित्र के बारे में विवादों पर विचार करने से रोकती है।
याचिका में कहा गया है कि ये प्रावधान बर्बर आक्रमणकारियों द्वारा स्थापित पूजा स्थलों को वैध बनाते हैं, जबकि हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों के अपने पवित्र स्थलों को पुनः प्राप्त करने और पुनर्स्थापित करने के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
इस समिति ने कहा कि 1991 के कानून ने विवादों की समीक्षा करने से अदालतों को रोककर न्यायिक अधिकार को कमजोर किया, जो संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है। याचिका में बताया गया है कि अधिनियम न्यायिक समीक्षा को रोकता है जो संविधान के मूलभूत पहलुओं में से एक है, इसलिए यह भारत के संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है।
याचिका में कहा गया है कि कानून हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को पूजा स्थलों को पुनः प्राप्त करने से रोकता है, और परिणामस्वरूप धर्म की स्वतंत्रता के उनके संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है।

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